जन्मकुंडली क्या है और कैसे देखें
भारतीय शास्त्रों में ज्योतिष को पांचवां वेद माना गया है। समस्त विज्ञानों में केवल ज्योतिष ही एकमात्र ऐसी विद्या है जो किसी व्यक्ति के भूत, भविष्य तथा वर्तमान की पूरी जानकारी दे सकती है। ज्योतिष के आधार पर किसी भी व्यक्ति विशेष के समस्त कर्मों का लेखा-जोखा देख कर उसके भाग्य का सहज ही आंकलन किया जा सकता है।
ज्योतिष में भूत, भविष्य तथा वर्तमान जानने के लिए कई विद्याएं प्रचलित है। इनमें जन्मकुंडली द्वारा फलादेश, प्रश्नकुंडली द्वारा फलादेश, सामुद्रिक शास्त्र (हस्तरेखा, ललाट की रेखाएं एवं शारीरिक लक्षण) के आधार पर भविष्यवाणी की जाती है। इस अध्याय में जन्मकुंडली द्वारा फलादेश तथा भविष्यवाणी करने की विद्या का अध्ययन करेंगे।
इस अध्याय के अन्तर्गत हम यह सीखेंगे कि जन्मकुंडली बनती कैसे हैं, उसमें लग्न क्या होता है, सूर्य कुंडली, चन्द्र कुंडली, नवमांश कुंडली, ग्रह दशा, विंशोत्तरी दशा, आदि क्या होती हैं? कुंडली में किसी घर (भाव) से क्या पता चलता है, किस ग्रह का क्या कार्य है? इन जैसे कुछ प्रश्नों को समझने का हम यहां प्रयास करेंगे।
जन्मकुंडली के लिए आवश्यक जानकारी
किसी भी व्यक्ति की जन्मकुंडली उसके बारे में शत प्रतिशत सही जानकारी देती है, बशर्ते वो बिल्कुल सही रूप से बनी हुई हो। जन्मकुंडली बनाने के लिए हमें तीन बातों का ज्ञान होना चाहिए, पहली- व्यक्ति की जन्म समय, दूसरी- व्यक्ति की जन्मतिथि तथा तीसरी- व्यक्ति का जन्मस्थान (अर्थात् उसका जन्म किस स्थान (शहर या गांव) में हुआ)
प्राचीन समय में जन्मकुंडली बनाने के लिए ज्योतिषी तथा पंडित गणना किया करते थे। इसमें मानवीय भूल होने की संभावना रहती थी जिसके चलते भविष्यकथन में भी त्रुटि हो सकती थी। वर्तमान में इस काम को सरलतापूर्वक करने के लिए कई कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर मौजूद हैं जो इस पूरी गणना को बड़ी आसानी से कर देते हैं। इनमें पाराशर लाइट, मैत्रेय, कुंडली, जगन्नाथ होरा आदि प्रमुख हैं। इस बार इन सॉफ्यवेयर्स में व्यक्ति के जन्मस्थान, जन्मसमय तथा जन्मतिथि को डालने के बाद उसकी पूरी कुंडली बन कर तैयार हो जाती है। इन जन्मकुंडलियों को आप अपने कम्प्यूटर पर सेव करके रख सकते हैं।
लग्न क्या होता है
किसी भी व्यक्ति का नाम किस अक्षर से आरंभ होना चाहिए, अर्थात् उसकी राशि क्या होगी, इसका निर्णय कुंडली में लग्न करता है। कुंडली में लग्न देखना बड़ा ही सरल है। उत्तरभारतीय पद्धति से बनाई गई कुंडली में लग्न को सदैव कुंडली के पहले घर में रखा जाता है। इस पहले घर में जो भी राशि है, वही उस व्यक्ति का लग्न होता है। इसी प्रकार दक्षिण भारतीय पद्धति से बनाई गई कुंडली में लग्न को दो आड़ी लाईन खींच कर बताया जाता है।
सामान्यत तौर पर लग्न एक राशि में दो घंटे तक रहता है, उसके बाद वह अपनी राशि को छोड़कर दूसरी राशि में प्रवेश कर जाता है। इसमें भी लग्न चार चरणों में रहता है। इन चरणों के आधार पर ही बच्चे के नामकरण के लिए उपयुक्त अक्षर का पता लगता है।
जन्मकुंडली में 12 घर तथा 9 ग्रह
किसी भी कुंडली में चाहे वो जन्मकुंडली हो, प्रश्नकुंडली हो या अन्य किसी प्रकार की, उसमें नौ ग्रह होते हैं। इनके नाम क्रम से (1) सूर्य, (2) चन्द्रमा, (3) मंगल, (4) बुध, (5) गुरु (अथवा बृहस्पति), (6) शुक्र, (7) शनि, (8) राहू तथा (9) केतु हैं। इनमें प्रथम सात ग्रह वास्तविक ग्रह हैं जो निरंतर सूर्य की परिक्रमा करते हैं, जबकि अंतिम दो राहू तथा केतु वास्तविक ग्रह न होकर पूरी ज्योतिषीय गणना के दो बिन्दु है, जिनमें राहू ऋणात्मक तथा केतु धनात्मक बिंदु है।
एक तरह से कहा जा सकता है कि जन्मकुंडली में जो भी गणना की गई है, उसका पूरा भार संतुलन करने के लिए ही राहू और केतु की परिकल्पना की गई है। इसीलिए किसी भी भविष्यवाणी से पहले इनकी स्थिति अवश्य देखी जाती है।
कुंडली में कुल 12 खाने होते हैं, जिन्हें भाव अथवा घर कहा जाता है। इन 12 घरों में 9 ग्रह अलग-अलग प्रकार से विराजमान होते हैं जिसके आधार पर व्यक्ति का जीवन टिका होता है। गणितीय आधार पर अगर गणना की जाए तो प्रमेय सिद्धांत (Permutation) के अनुसार कुल 12x11x10x9x8x7x6x5x4x3x2x1 = 47,90,01,600 (अर्थात् सैतालींस करोड़ नब्बे लाख एक हजार छह सौ) प्रकार की जन्मकुंडली बनाई जा सकती है। अगर पूरी दुनिया की आबादी कुल आठ अरब मानी जाए तो पूरी धरती पर केवल 16 लोगों की ही कुंडली शत-प्रतिशत मैच करेगी। सरल भाषा में किसी भी व्यक्ति की जन्मकुंडली उसके फिंगरप्रिंट की तरह ही अनूठी तथा सबसे अलग होती है।
कौनसा घर क्या बताता है
कुंडली के सभी खाने (या घर) हमारे शरीर, जीवन तथा चरित्र के अलग-अलग हिस्सों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन खानों से ही हम अंग विशेष या जीवन के किसी विशेष चीज के बारे में जान सकते हैं। ये निम्न प्रकार हैं-
- कुंडली का पहला घर – व्यक्ति के शरीर के बारे में जानकारी देता है।
- कुंडली का दूसरा घर – उसकी धन, संपत्ति, परिवार, चेहरा आदि बताता है।
- कुंडली का तीसरा घर – व्यक्ति के भाईयों, भुजाओं, कानों तथा अन्य किसी भी प्रकार की प्राप्त होने वाली सहायता की जानकारी देता है।
- कुंडली का चौथा घर – व्यक्ति की माता, वाहन, घर आदि की जानकारी देता है।
- कुंडली का पांचवां घर – व्यक्ति के बच्चों, प्रणय संबंध, खेल-कूद, रूचियों, मान-सम्मान आदि को बताता है।
- कुंडली का छठा घर – व्यक्ति के शत्रुओं, ऋण, रोग, दुर्घटनाओं आदि की जानकारी देता है।
- कुंडली का सातवां घर – व्यक्ति के जीवनसाथी तथा उसके प्रणय संबंधों को बताता है।
- कुंडली का आठवां घर – व्यक्ति के जीवन का निर्धारण करता है।
- कुंडली का नवां घर – व्यक्ति के धर्म-कर्म, मानसिक अभिरूचि, शिक्षा, गुरु, ईश्वर तथा धार्मिक विश्वास आदि बताता है।
- कुंडली का दसवां घर – व्यक्ति के पिता तथा उसके जीवन के उद्देश्य की जानकारी देता है।
- कुंडली का ग्यारहवां घर – व्यक्ति की आय, संपत्ति-जायदाद आदि को बताता है।
- कुंडली का बारहवां घर – उसकी मृत्यु का निर्धारण करता है। इसी घर से पता लगता है कि व्यक्ति के किसी भी कार्य का अंतिम परिणाम क्या होगा।