चन्द्र कुंडली तथा सूर्य कुंडली
जन्मकुंडली में लग्न के बजाय अगर चन्द्रमा को लग्न मान कर कुंडली बनाई जाए तो ऐसी कुंडली को चन्द्र कुंडली कहते हैं। इस कुंडली में चन्द्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है तथा व्यक्ति की मनोदशा को बताता है। इसी प्रकार सूर्य को लग्न मान कर जो कुंडली बनाई जाएगी, उसे सूर्य कुंडली कहते हैं। सूर्य कुंडली व्यक्ति की आत्मा का प्रतिनिधित्व करती है। यह उस व्यक्ति के समस्त तेज तथा प्रभाव को बताएगी।
नवमांश कुंडली
किसी भी व्यक्ति के भाग्य का निर्णय उसकी नवमांश कुंडली देखे बिना नहीं किया जा सकता है। लग्न कुण्डली शरीर को एवं नवमांश कुण्डली आत्मा को निरुपित करती है। केवल जन्म कुण्डली से फलादेश करने पर फलादेश समान्यत सही नहीं आता। अगर कोई ग्रह जन्म कुण्डली में नीच का हो एवं नवांश कुण्डली में उच्च को हो तो वह शुभ फल प्रदान करता है जो नवांश कुण्डली के महत्त्व को प्रदर्शित करता है। नवांश कुण्डली में नवग्रहों सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि के वर्गोत्तम होने पर व्यक्ति क्रमश: प्रतिष्ठावान, अच्छी स्मरण शक्ति, उत्त्साही, अत्यंत बुद्धिमान, धार्मिक एवं ज्ञानी, सौन्दर्यवान एवं स्वस्थ और लापरवाह होता है।
ग्रहों की महादशा
कोई भी ग्रह सभी बारह राशियों का परिक्रमण जितने समय में करता है, उसी समय को ग्रह की महादशा कहा जाता है। इस समय के आधार पर भी व्यक्ति पर ग्रह विशेष का सकारात्मक या नकात्मक प्रभाव पड़ता है। आम बोलचाल की भाषा में कोई भी ग्रह किसी व्यक्ति की कुंडली में कितने समय के लिए सर्वाधिक प्रभावशाली रहता है, इसी को महादशा कहते हैं। ज्योतिषीय गणना में व्यक्ति की उम्र 120 वर्ष मान कर की जाती है। के अनुसार दशा को विंशोत्तरी तथा महादशा के रूप में बताया जाता है। ग्रहों का दशाकाल निम्न प्रकार है-
- सूर्य – 7 वर्ष
- चन्द्रमा – 10 वर्ष
- मंगल – 7 वर्ष
- राहू – 18 वर्ष
- गुरु – 16 वर्ष
- शनि – 19 वर्ष
- बुध – 16 वर्ष
- केतु – 7 वर्ष
- शुक्र – 20 वर्ष
ग्रहों की अन्तर्दशा
कुंडली में मुख्य ग्रहों की महादशा के समय में ही अन्य ग्रह भी अपनी-अपनी गति अनुसार अलग-अलग राशियों में परिक्रमा करते रहते हैं। इन ग्रहों के भ्रमण को ही अन्तर्दशा कहा जाता है। इस समय में मुख्य ग्रह के साथ-साथ अन्तर्दशा ग्रह के स्वामी के भी शुभ-अशुभ प्रभाव फल का अनुभव होता है।