अर्थववेद ज्योतिष में ग्रहों की अनुकूलता-प्रतिकूलता देखने के लिए कई तरह की गणनाएं तथा विधियां बताई गई हैं। “करण” भी इन्हीं में से एक है। अर्द्ध चन्द्र-रात्रि को करण कहा जाता है। ज्योतिष में ग्यारह प्रकार के करण बताए गए हैं। ग्यारह करणों में प्रथम सात करण क्रमशः बव, बालव, तैतिल, कौलव, गर, वणिज तथा विष्टि चर करण कहे जाते हैं। इनमें से प्रत्येक करण एक चन्द्रमास में आठ बार आता है। शेष चार करण स्थिर करण है जिनके नाम क्रमश शकुनि, चतुष्पद, नाग तथा कौस्तुभ हैं।
अर्थववेद में इन करणों के बारे में वि्स्तार से बताया गया है। प्रत्येक करण के अपने देवता होते हैं जिनकी प्रकृति के अनुसार ही उस करण में शुभ, अशुभ कार्य करने की सलाह दी जाती है। विस्तार से ये निम्न प्रकार हैं-
- बव करण – इस करण के स्वामी देव विष्णु है। इस करण में चर तथा स्थिर दोनों ही प्रकार के कार्य करने की अनुमति दी गई है। िवशेष रूप से इस करण को यात्रा, नवीन स्थान ग्रहण, नवीन कार्यारम्भ हेतु उपयुक्त माना गया है।
- बालव करण – इस करण के स्वामी देव ब्रह्मा है। इसे ब्राह्मणों तथा पूजा-पाठ से जुड़े कार्यों यथा मुंडन, यज्ञोपवीत, यज्ञ, विवाहादि, चूड़ा कर्म आदि के लिए शुभ माना गया है।
- तैतिल करण – तैतिल करण के स्वामी देव इन्द्र है। समस्त प्रकार के राजसी प्रवृत्ति वाले कार्य यथा सरकारी पदों का प्रभार ग्रहण, नवीन योजनाओं के कार्यान्वयन, सरकारी कार्यों हेतु इस करण को अनुकूल बताया गया है।
- कौलव करण – इस करण के स्वामी देव चन्द्रमा है। इस करण को शांति कार्यों यथा मित्रता व स्थिर कार्यों हेतु प्रशस्त किया गया है।
- गर करण – इस करण के स्वामी वास्ुदेव है। इसे शिल्पकर्म तथा कृषिकर्म हेतु प्रशस्त माना गया है। इस समय में नूतन गृहप्रवेश, भवन शिलान्यास, शिल्प कार्य, इंजीनियरिंग संबंधी, खेत जोतने तथा कृषि से जुड़े कार्य करने की आज्ञा दी गई है।
- वणिज करण – इस करण के स्वामी देव मणिभद्र है। इसे व्यापारियों के लिए शुभ माना गया है। इस समय में होने वाले सौदों में विक्रेता को फायदा होता है जबकि खरीदने वाला नुकसान में रहता है।
- विष्टि करण – इस करण के स्वामी देव यम है अतः इस समयान्तर में कोई भी शुभ कार्य करने पर असफलता ही हाथ लगती है। यहां तक कि इस करण में कार्यारम्भ करने वाले की मृत्यु तक हो सकती है। परन्तु विष्टि करण के तीसरे तथा अंतिम भाग में आरंभ किए गए कार्य को यदि ईमानदारी से किया जाए तो यम देव प्रसन्न होकर सफलता तथा विजय का वरदान देते हैं।
- शकुन करण – इस करण के स्वामी देव गरुड़ है। यह क्रूर कार्य हेतु प्रशस्त माना गया है। यदि चर्तुदशी की रात्रि को शकुन करण हो तो उस समय शत्रु पर हमला करने, युद्धारम्भ करने, विष प्रयोग करने, औषधि निर्माण किया जाए तो सफलता मिलती है।
- चतुष्पद करण – इस करण के स्वामी देव वृष है। यदि अमावस्या को दिन में चतुष्पद करण हो तो उसमें तंत्र-मंत्र अभिचार द्वारा शत्रु का संहार या मृत्यु संभव है। इसे श्राद्धकर्म तथा पितृ तर्पण हेतु उपयुक्त बताया गया है।
- नाग करण – नाग करण के स्वामी देव नाग है। इस करण में आरंभ किया गया कोई भी कार्य असफलता ही देता है परन्तु अमावस्या की रात्रि में नाग करण आने पर किसी भी प्रकार के क्रूर कर्म किए जा सकते हैं। इसमें चोरी, अपहरण, बंदी बनाना, हत्या करना, किसी का अनिष्ट करने जैसे कार्य विशेष रूप से फलदायी होते हैं।
- कौस्तुभ करण – कौस्तुभ करण के स्वामी देव कुबेर है। यह आर्थिक कार्यों के लिए विशेष शुभ है। शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को दिन में कौस्तुभ करण आने पर सभी प्रकार के कार्य किए जा सकते हैं। यदि इस समय धन कमाने संबंधी कार्य किए जाएं तो अवश्य ही सफलता मिलती है।
उपरोक्त ग्यारह करणों में से केवल सात करण बव, बालव, तैतिल, कौलव, गर, वणिज तथा कौस्तुभ चर शुभ कार्यों हेतु अनुकूल माने गए हैं। शेष चार विष्टि, शकुन, चतुष्पद तथा नाग करण केवल रौद्र या क्रूर कर्मों हेतु ही उपयुक्त माने जाते हैं अतः शास्त्र इन करणों में किसी भी मांगलिक कार्य को करने की आज्ञा नहीं देते हैं।