राम भक्त ‘श्री हनुमान’ जी से सीखें जीवन जीने के ये दस प्रमुख सूत्र
— आचार्य अनुपम जौली
ग्रंथों के अनुसार कलियुग में हनुमान जी की शक्ति और हनुमान जी का अस्तित्व पूर्णरूप से प्रभावी है । इस युग में हनुमान जी को प्रमुखता में स्वीकार किया गया है क्यों की उनकी शक्ति करोड़ों लोग निरंतर अनुभव करते है । अत: कलियुग में हनुमान जी को सबसे मुख्य ‘देवता या भगवान’ की श्रेणी में रखा जाता है।
वाल्मीकि रामायण और तुलसी जी कृत रामचरित मानस के सुन्दरकाण्ड में श्री हनुमान जी के बल का बजरंगबली के रूप और इसी प्रकार हनुमान चालीसा में उनकी शक्ति का वर्णन विस्तार से किया गया है । जो की युवा वर्ग के लिए अत्यंत प्रेरणादायी है ।
तुलसीदास जी हनुमान चालीसा में कहते है “संकट कटे मिटे सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बल बीरा“। जो भी भक्त हनुमान जी याद करता है उनकी पूजा करता है और उनके नाम की माला जपता है उसके संकट समाप्त होते है और सभी प्रकार की पीड़ाओं से मुक्ति मिलती है । श्रीहनुमान जी का जीवन चरित्र आज के समय में युवाओं के लिए उनके जीवन प्रबंधन के सूत्रों के रूप में प्रेरणा प्रदान करने वाले साबित होते है।
मेरे इस लेख में श्रीहनुमान जी के दस गुणों का वर्णन करेंगें जिनकों अपने जीवन में उतारकर आज का युवक इस संघर्षमय जीवन को सरल और प्रभावशाली बना सकता है।
- Communication Skill संवाद कौशल : –
श्रीहनुमान जी माता सीता जी को खोजते हुए जब सर्वप्रथम उनसे अशोक वाटिका में मिले तो उनको ये विश्वास दिलाना की वह रावण का षड्यंत्र नहीं है और उन्हें स्वयं भगवान श्रीराम ने भेजा है बहुत मुश्किल जान पड़ रहा था । इसे में हनुमान जी ने अपने शब्दों से उनकों भरोसा दिलाने में कामयाब रहे की वह श्रीराम जी के ही दूत है। सुन्दरकाण्ड में इस संधर्भ में इस प्रकार कहा गया है :
कपि के वचन सप्रेम सुनि, उपजा मन बिस्वास।
जाना मन क्रम बचन यह, कृपासिंधु कर दास।।
- Politeness विनम्रता : –
अतुलित बल के धाम श्रीहनुमान जी जब माता सीता की खोज में समुद्र लाँघ रहे थे तो उनकी परीक्षा हेतु देवताओं में ‘सुरसा राक्षसी’ को भेजा । सुरसा ने एक विशाल शरीर धारण कर हनुमान जी का रास्ता रोका और और हनुमान जी ने भी सुरसा का मान रखने के लिए अपना शरीर का पहले तो विस्तार किया फिर अपना लघु रूप लेकर सुरसा के मुख में से निकल गए । “जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा, तासु दून कपि रूप देखावा।” ऐसे में श्री हनुमान जी ने सूझबूझ और “विनम्रता” से सुरसा को संतुष्ट कर वे आगे बढ़े ।
- No compromise with ideals आदर्शों से कोई समझौता नहीं : –
लंका में रावण के महल के उपवन में अपना पराक्रम दिखाने के उपरांत श्रीहनुमान जी का सामना इन्द्रजीत (मेघनाथ) से हुआ ऐसे में हनुमान जी के बल को देखकर मेघनाथ को मज़बूरी में ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना पड़ा । हनुमान जी चाहते तो ब्रह्मास्त्र का तोड़ निकल सकते थे और ब्रह्मास्त्र को निष्फल भी कर सकते थे । ऐसा न कर हनुमान जी ने ब्रह्मास्त्र का सम्मान बनाये रखा और उसका आघात सह लिया । ऐसे में हम श्रीहनुमान जी सीख सकते है की अपने आदर्शों से समझोता कभी न करें । चाहे उसके लिए कितना भी कष्ट सहना पड़ें । ऐसे में तुलसीदास जी ने श्रीहनुमान जी के लिए लिखा है :
“ब्रह्मा अस्त्र तेंहि साँधा, कपि मन कीन्ह विचार।जौ न ब्रहासर मानऊँ, महिमा मिटाई अपार।।
- Hanuman Ji in multi-faceted role बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्रीहनुमान जी : –
समान्यतया हनुमान जी बहुत ही साधारण जीवन जीते हुए अपने सभी दायत्वों का बखूबी निर्वाह करते है, भक्त के रूप में, सुग्रीव के मित्र रूप में इत्यादि इत्यादि परन्तु जहाँ धर्म और दायित्व में बल की जरुरत होती है वहाँ वो विकट रूप में भी तुरंत आ जाते है ।
“सूक्ष्म रूप धरी सियंहि दिखावा, विकट रूप धरी लंक जरावा”
माता सीता जी के सामने पुत्र रूप में अपने लघु रूप में प्रकट हुए वहीँ संघारक के रूप में वो राक्षसों और असुरों के लिए महाबलशाली रूप में बन गए ।
- Far away from complacency आत्ममुग्धता से निर्लिप्तता : –
रावण की लंका से माता सीता का समाचार लेकर जब श्रीहनुमान वापस सकुशल पहुचें तो उनके इस कार्य की सब तरफ प्रशंसा हो रही थी पर हनुमान जी इन सबसे बिना लिप्त हुए श्रीराम जी के चरणों में बैठकर उनके आशीर्वाद को सम्पूर्ण श्रेय दे रहे थे । उनके पराक्रम के पुरे वृतांत को सुनकर प्रभु श्रीराम श्रीहनुमान जी की आत्ममुग्धता से अलिप्तता के कायल हो गए ।
- Problem not, solution किसी भी प्रकार से समस्या का समाधान ढूँढना : –
रणभूमि में लक्ष्मण जी के मूर्छित होने पर उनके जीवन रक्षा हेतु हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने गए तो वहाँ जब वें संजीवनी बूटी को पहचान नहीं पाए और समय अत्यंत कम होने की वजह से उन्होंने तुरंत समाधान स्वरुप पूरे पहाड़ को उठा लिया । इस घटना से हमें बहुत ही अच्छा ज्ञान मिलता है की शंकाए करने और कार्य की पूर्ति न करने से अच्छा है की उस समय के अनुसार अप्रत्याशित निर्णय लेकर भी समाधान ढूंढ लेना चाहिए ।
- Balance of emotions भावनाओं पर नियंत्रण और संतुलन : –
माता सीता को विश्वास दिलाकर लंका दहन उपरांत श्रीहनुमान जी चाहते तो माता सीता को तभी वहीँ से अपने साथ ला सकते थे । परन्तु माता सीता भी चाहती थी की उनके भगवान श्रीराम ही उन्हें वहाँ से लेकर जाएँ । रामभक्त हनुमान जी पुत्र सदृश उनकों बड़ी आसानी से ले जा सकते थे परन्तु उन्होंने धैर्य का परिचय देते हुए माता को कहाँ की मै रावण की भांति आपको चोरी करके नहीं ले जा सकता । समाज में भी यह उदाहरण सही नहीं जायेगा । उन्होंने कहाँ भगवान श्रीराम खुद अतिशीघ्र आपको सम्मान पूर्वक यहाँ से लेकर जायेंगें । उचित अनुचित का ज्ञान रखते हुए, ऐसे हर क्षेत्र में हनुमान जी संतुलित थे ।
“ता कहूं प्रभु कछु अगम नहीं, जा पर तुम्ह अनुकूल । तव प्रभाव बड़वानलहि ,जारि सकइ खलु तूल ।।
- Intellectual efficiency and loyalty बौद्धिक दक्षता और निष्ठा : –
श्रीहनुमान जी ने प्रयतेक कार्यों में बौद्धिक कुशलता और वफ़ादारी का परिचय दिया । बलशाली बलि के होते हुए भी हनुमान जी सुग्रीव का साथ दिया । बलि वध के लिए अपनी कुशलता से प्रभु श्रीराम को मना भी लिया । विभीषण को प्रभु श्रीराम से मिला दिया । तुलसीदास जी को प्रभु श्रीराम जी से मिला दिया इत्यादि इत्यादि । प्रभु श्रीराम जी की एकनिष्ट भक्ति उनका सबसे उत्तम उद्धरण है ।
एक भजन के बोल भी इस प्रकार से है : राम जी चले न हनुमान के बिना, हनुमान जी चले न श्रीराम के बिना ।।
- Leadership ability नेतृत्व क्षमता : –
सुग्रीव और उसकी समूची वानर प्रजाति को एकजुट करके उनका नेतृत्व व उनसे अत्यंत कठिन रामसेतु बनवाने में श्रीहनुमान जी ने और राम रावण युद्ध में शानदार तरीके से हनुमान जी अपने नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया।
- Dedication समर्पण : –
श्रीहनुमान जी श्रीराम जी के प्रति पूर्ण समर्पित है । आदर्श ब्रह्मचारी है । अपने आदर्शों पर पूर्ण दृड है । अतुलित बल के धाम है । अष्ट प्रकार की सिद्धियों और समस्त नव निधियों के दाता है । कलयुग में सिर्फ श्रीहनुमान जी ही हम कमजोर लोगों की नैय्या पार लगा सकते है । अत: भगवान श्रीराम के प्रति पूर्ण समर्पित श्रीहनुमान जी शरण में सभी दुखों का नाश है रोगों का नाश है ।
नासे रोग हरे सब पीड़ा, जपत निरंतर हनुमत बीरा ।।
।। जय जय श्रीराम ।। जय जय श्रीहनुमान ।। जय जय श्रीराम ।। जय जय श्रीहनुमान ।। जय जय श्रीराम ।।
ॐ तत सत ।।
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