जन्मपत्रिका में उपस्थित विभिन्न योगों के कारण व्यक्ति अमीर, गरीब, मंत्री, उच्च पद और संकटों इत्यादि से घिरा रहता है। अलग अलग दशाकाल में उसके अलग अलग प्रभाव देखने को मिलतें है। जन्मपत्रिका में केन्द्र भावों और त्रिकोण भावों के स्वामियों में सम्बन्ध चतुष्टय के अनुसार यदि किसी भी प्रकार का योग बनता है तो राजयोग कहलाता है।
ज्योतिष शास्त्र में विशेष प्रकार से बनने वाले योगों को विशिष्ट राजयोग कहते हैं। ये योग सामान्य योगों से हटकर होते हैं। प्रस्तुत लेख में इन योगों की चर्चा की जा रही है जो विशिष्ट प्रकार के योग होते हैं तथा हम इन्हें विशिष्ट राजयोग कह सकते है। ये सभी योग मानव जीवन में समृद्धिकारक होतें है। इन योगो में उत्पन्न लोगों के जीवन में उन्नत्ति, समृद्धि व उच्च पदों की प्राप्ती अवश्य होती है।
कलश योग – यदि सभी शुभ ग्रह नवम तथा एकादश भाव में स्थित हों तो ‘कलश’ नाम योग होता है। इस योग वाला जातक मंत्री पद अथवा उच्च पद को प्राप्त करता है तथा बड़े-बड़े लोग उससे परामर्श लेने के लिए आया करते हैं। इसी को ‘नागर’ योग भी कहते है।
सिंहासन योग – यदि सभी ग्रह द्वितीय, तृतीय, षष्ठ, अष्टम तथा द्वादश भाव मं हों तो ‘सिंहासन’ नामक योग होता है इस योग वाला जातक राजय सिंहासन को प्राप्त करता है।
एकावली योग – यदि लग्न से अथवा किसी भी भाव से आरम्भ करके सातों ग्रह क्रमश: सातों भावों में स्थित हो तो ‘एकावली नामक योग होता है। इस योग वाला जातक मुख्यमंत्री राज्यपाल आदि उच्च पदों को प्राप्त करता है।’
चतु:सार योग – यदि सभी ग्रह मेष, कर्क, तुला, तथा मकर राशियों में हों तो ‘चतुसार’ नामक दूसरा योग होता है। इस योगवाला जातक शासन में अत्यन्त उच्च पद को प्राप्त करने वाला, उपराष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, राज्यपाल आदि होता है। साथ ही बड़ा धनी होता है तथा उसके सभी अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं।
अमर योग – मेष अथवा सिंह लग्न हो तथा सूर्य केन्द्र अथवा त्रिकोण में हो अथवा चन्द्रमा वृष या कर्क का हेाकर द्वादश अथवा अष्टम भाव में बैठा हो तथा इन पर (सूर्य अथवा चन्द्रमा पर) गुरु एवं शुक्र की शुभ दृष्टि पड़ रही हो ‘अमर’ योग होता है तथा उसके सभी अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं।
चाप योग – यदि शुक्र तुला राशि में, मङ्गल मेष राशि में गुरु स्वराशि में स्थित हो तो ‘चाप’ नामक योग होता है। इस योग वाला जातक राज्यधिकारी होता है।
महासागर योग- ‘केन्द्रे शुभे त्रिषडाये खले’ अर्थात् लग्न, चतुर्थ, सप्तम दशम भाव में बुध, गुरु, शुक्र तथा चन्द्रमा बैठे और राहु तृतीय भाव में, मंगल षष्ठीााव में एवं शनि एकादश भाव के हों, तो ‘महासागर’ नामक योग होता है। इस योग वाला राज्यपाल, राजदूत, मंत्री आदि होता है। ऐसा व्यक्ति देवता तथा ब्राह्मणों के प्रति श्रद्धा रखता है, परन्तु उसका शरीर किसी न किसी राजयोग (राजयक्ष्मा आदि) से दु:खी बना रहता है।
राज्ययोग – कर्क में बृहस्पति, नवमभाव में शुक्र तथा सप्तम भाव में मङ्गल एवं शनि की स्थिति हो तो ऐसे ‘राज्ययोग’ में जन्म लेने वाला जातक उच्च शासनाधिकारी, ऐश्वर्यवान, धनी, प्रतापी एवं सुखी होता है।
चक्रयोग – यदि एक राशि के अन्तर से छ: राशियों में समस्त ग्रहों की स्थिति हो तो चक्र नामक योग होता हे, इस योग वाला जातक राज्यपाल, राष्ट्रपति अथवा मंत्रीपद प्राप्त करता है। वह अत्यन्त रूपवान, श्रीमान्, राजनीतिज्ञ, प्रतापी, ऐश्वर्यशाली एवं यशस्वी होता है। बीस वर्ष की आयु के बाद इस योग वाले के प्रभुत्व में वृद्धि प्रारम्भ हो जाती है।
मालायोग – यदि बुध, गुरु तथा शुक्र चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भाव में हों तथा शेष ग्रह इन स्थानों से भिन्न भावों में हो तो माला योग होता है। इस योग वाला जातक अन्न-वस्त्र-आभुषण धन आदि से सम्पन्न अनेक स्त्रियों से पे्रम करने वाला, संसद सदस्य अथवा उच्च शासनाधिकारी होता है, उसे पंचायत आदि के निर्वाचन में भी पूर्ण सफलता प्राप्त होती है।
राजमंत्रित्व योग – यदि पापग्रह से रहित बृहस्पति केन्द्र में हो तो ‘राजमंत्रित्व नाम योग होता है। इस योग वाला जातक दानी, मानी, गुणी, संगीतज्ञ, धनी, सुखी, नीतिज्ञ तथा मंत्रीपद प्राप्त करने वाला होता है।
गजकेसरी योग -यदि लग्न अथवा चन्द्रमा से गुरु केन्द्र में हो और वह केवल शुभग्रहों से दृष्ट अथवा युत हो। किसी नीच व शत्रुराशि में न हो, तो ‘गजकेसरी’ नामक योग होता है। इस योग वाला जातक राज्यपाल, मुख्यमंत्री अथवा अन्य उच्च शासनाधिकारी बनता है। दरिद्र कुल में उत्पन्न होकर भी इस योग के कारण शासन में बहुत उच्चपद अवश्य प्राप्त करता है।
राजहंस योग – यदि सभी ग्रह विषमराशि में स्थ्ति हों, तो ‘राजहंस’ नामक योग होता है। इस योग वाला जातक सब प्रकार के सुख, राज्य तथा शासन में उच्च पद को प्राप्त करता है। इस योग वाले व्यक्ति मुख्यमंत्री, राजदूत, राज्यपाल आदि होते हैं।
श्रीनाथ योग – यदि सप्तमेश दशम भाव में उच्च का होकर बैठा हो तथा दशमेश नवमेष से युत हो तो ‘श्रीनाथ’ नामक योग होता है। इस योग वाला जातक धन, सुख, यश, कीर्ति, गुण आदि से सम्पन्न होता है। शासन में विधायक, सांसद अथवा मंत्री पद को प्राप्त करता है।
शंखयोग – लग्नेश बली हो पंचमेश एवं षष्ठकेश परस्पर केन्द्र में बैठे हो अथवा भाग्यदेश बली हो तथा लग्नेश एवं दशमेश चरराशि में हो तो ‘शंख’ नामक योग होता है। इस योग वाला जातक दयालु, धर्मात्मा, पुण्यात्मा, बुद्धिमान, गुणवान् तथा दीर्घायु होता है। वह शासन में मंत्री अथवा मुख्यमंत्री का पद भी प्राप्त कर सकता है।
अधियोग – यदि समस्त शुभ गृह चन्द्रमा से षष्ठ, सप्तम तथा अष्टम भाव में हो तो ‘अधि’ नायक होता है। इस योग वाला जातक बड़ा अध्ययनशील ‘बुद्धिमान’ तेजस्वी तथा अत्यन्त आकर्षक व्यक्तित्व सम्पन्न होता है। यह मंत्री, राज्यपाल, सेनाध्यक्ष आदि पदों को भी प्राप्त करता है।
छत्र योग – यदि लग्न, द्वितीय, सप्तम तथा द्वादश इन चारों में ही सभी ग्रह स्थित हो तो दूसरे प्रकार का ‘छत्र’ योग होता है। यह योग पूर्व जन्म के अत्यन्त प्रबल पुण्यों के प्रताप से ही प्राप्त होता है। इस योग वाला जातक सर्वगुण सम्पन्न, महाधनी, यशस्वी तथा अत्युच्च शासनाधिकारी राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल, प्रधानमंत्री होता आदि है।
शशक योग – यदि शनि अपने उच्च होकर केन्द्रस्थ हो तो ‘शशक’ नामक योग होता है। इस योग वाला जातक छोटे परन्तु कुछ उन्नत दांतों वाला, छोटे मुख वाला, चंचल तथा छोटी आंखों वाला, कृश कमर वाला, सुन्दर जांघों वाला, मध्मय कद वाला, अद्भुत चाल चलने वाला, जनहीन स्थान में विहार करने वाला हाथ-पांवों में खट्वाशंख, शर, मृदङ्ग, माला, वीणा आदि चिह्नों को धारण करने वाला होता है। यह जातक अनेक प्रकार की सेनाओं को रखता हुआ 70 वर्ष की आयु तक उत्तम रीति से राज्य का उपभोग करता है।