विवाह में मंगलीक योग व परिहार विचार

Manglik (Mangal) Dosha Effects and Remedies

Manglik Dosha after 28 years

मांगलिक दोष : लड़के या लड़की की जन्म कुन्डली में यदि पहले, चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में मंगल पड़ जाए तो एक दूसरे के जीवन को अरिष्टकारी होते हैं। दक्षिण भारत में द्वितीय भाव को भी इसमें शामिल किया है l प्रथम भाव शरीर, सोच को दर्शाता है, द्वितीय भाव आर्थिक स्थिति को दर्शाता है, चतुर्थ भाव मानसिक सुख को दर्शाता है, सप्तम भाव वैवाहिक सुख को, अष्टम भाव मांगल्य अर्थात आयु को दर्शाता है और द्वादश भाव शय्या शुख से सम्बंधित है l अत: ये सब भाव किसी न किसी तरह से वैवाहिक और पारिवारिक जीवन हेतु बहुत ही जरुरी भाव है l मांगलिक के उपरांत एक अच्छे ज्योतिषी को संतान भाव को भी ढंग से देख लेना चाहिए l

यदि वर और कन्या दोनों की कुंडलियां मंगलीक हों तो विवाह करने में कोई दोष नहीं। यद्यपि योनि, गुण, नाड़ी, गण इत्यादि का मिलान भी कर लेना चाहिए। कुछ अन्य दशाओं में भी मंगल दोष शान्त हो जाता है यदि

(1) अन्य कुंडली में 1,4,7,8,12 भाव में शनि हो तो उसका भौम दोष शान्त हो जाता है । यथायामित्रे च यदा सौरिर्लग्ने च हिबुके तथा । अष्टमे द्वादशे चैव भौम दोषो न विद्यते ।।

(2) बली गुरु व शुक्र लग्न या 7 भाव में स्थित हो तो भी भौम दोष नहीं रहता।

(3) यदि कन्या की कुंडली में जहां मंगल हो, उसी स्थान पर वर की कुंडली में कोई प्रबल पाप ग्रह हो तो भौम दोष नहीं रहता ।

यथाशनि भौमोऽथवा कश्चित्पातो वा तादृशोभवेत् । तेष्वेव भवनेष्वेव भौमदोष विनाशकृत् ।।

(4) मेष राशि का मंगल लग्न में, या वृश्चिक राशि का मंगल चतुर्थ भाव में या मकर का सातवें या कर्क का आठवें या धनु राशि का मंगल 12वें हो तो भौम दोष नहीं रहता ।

यथाअजे लग्ने व्यये चापे पाताले वृश्चिके कुजे। चूने मृगे ककिंचाष्टौ भौम दोषो न विद्यते।।

(5) यदि दूसरे भाव में चन्द्र-शुक्र हो, मंगल-गुरु की युति हो या गुरु पूर्ण दृष्टि से भौम को देखता हो, तथा केन्द्र भाव में राहु अथवा मंगल-राहु कहीं एक साथ हो तो भौम दोष नहीं रहता। (मुहूर्त दीपक से) यथा –

न मंगनी चन्द्रे भृगुन मंगली पश्यत्ति यस्यजीव। न मंगली केन्द्र गते च राहुन द्वितीये न मंगली मंगल-राहु योगे ।।

(6) केन्द्र में चन्द्र या चन्द्र-मंगल की युति होने पर भी भौम दोष नहीं होता है।

(7) केन्द्र त्रिकोण में शुभ-ग्रह तथा 3,6,8,11वें भाव में पाप ग्रह हो तो भी भौम दोष शान्त हो जाता है।

(8) वर की कुंडली में छठे भाव में मंगल, सातवें में राहु, आठवें में शनि हो तो उसकी पत्नी जीवित नहीं रहती अर्थात् मंगलीक जैसा प्रभाव होता है। यथाषष्ठे च भवने भीमो राहुः सप्तमे सम्भव । अष्टमे यदा सौरितस्य भार्या न जीवति।।

(9) राशि मैत्री हो, गण एक हो या तीससे अधिक गुण मिलते हो तो भौम दोष का विचार नहीं करना चाहिए । यथा –

राशि मैत्रं यदायाति गणैक्यं वा यदा भवेत् । अथवा गुण बाहुल्ये भौम दोषो न विद्यते ।।

(10) वक्री, नीच, अस्त अथवा शत्रु क्षेत्री मंगल 1,4,7,8,12 वें भाव में हो तो भी भौम दोष नहीं रहता है।

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