विज्ञान आदमी की मृत्यु के बाद आत्मा का अस्तित्व नहीं मानता। इसके बावजूद संसार के प्रत्येक धर्म, सम्प्रदाय में यह धारणा है कि मरने के बाद आत्मा का अस्तित्व रहता है। भारत के विश्व प्रसिद्ध धर्मग्रंथ ‘गीता’ में तो इसे स्पष्टत: माना गया है।
आत्मा का अस्तित्व मनुष्य की मृत्यु के बाद भी माना गाया है, विज्ञान अभी इसे प्रमाणित नहीं कर पा रहा है, पर ‘परा-विज्ञान’ ने इसे प्रमाणित कर दिया है। तांत्रिक इसका सबसे सशक्त गवाह है।
सबसे बड़ी समस्या शरीर से निकलकर गई आत्मा से सम्पर्क की है। मंत्रों की साधना कठिन मानकर कुछ विशेष यंत्र बनाए गए जिनमें माध्यम और एक मुस्लिम पद्धति हाजरात भी है।
प्लेनचिट
प्लेनचिट कोई ११० वर्ष पूर्व इंगलैंड के एक परा-वैज्ञानिक डाक्टर चैटस्मिथ द्वारा आविष्कृत की गई थी। उन्होनें इसे ‘प्लान’ (योजना) बनाई। वही उनके नाम के साथ जुड़ गई और ‘प्लेनचिट’ बन गई। आमतौर पर यह तीन प्रकार की होती है। एक विवरण तो ऊपर आ गया है। दूसरी में एक गोलाकार बड़े कागज पर गोलाकृति में ही अंग्रेजी के 26 अक्षर लिख दिए जाते है और बीच में एक कटोरी रख दी जाती है। आत्मा के प्रवेश करने पर कटोरी स्वयं घूम-घूमकर वर्ण पर चलती है और इस प्रकार आत्मा अपना सन्देश दे दिया करती है। ‘प्लेनचिट’ के और भी कई रूप हैं, पर उनकी कार्य प्रणाली लगभग एक जैसी है। विधियाँ अलग अलग हैं।
प्लेनचिट का चालन क्या प्रत्येक व्यक्ति कर सकता है इसका स्पष्ट उत्तर है, ‘नहीं’।
आत्मा का आह्वान करने वाला व्यक्ति सशक्त मन, पवित्र और कम से कम ‘हिप्नाटिज्म’ में दक्ष हो। उसे अपने मन पर संयम करना आता हो और जो पूर्ण एकाग्रता के साथ आह्वान का सकता हो।
आत्मा का आह्वान करने वाला व्यक्ति सशक्त मन, पवित्र और कम से कम ‘हिप्नाटिज्म’ में दक्ष हो। उसे अपने मन पर संयम करना आता हो और जो पूर्ण एकाग्रता के साथ आह्वान कर सकता हो।
प्लेनचिट पर आह्वान कर्ता सर्वप्रथम एक साफ स्वच्छ बड़े कमरे में बैठ जाए। दरवाजा बन्द कर ले, केवल खिड़कियाँ और रोशनदान खुले रखें, अगरबत्ती आदि जलाकर रखे ले। इसके बाद प्लेनचिट के समक्ष बैठकर एकाग्रमन से आत्मा को आह्वान करें। यह क्रिया कई बार और कई दिन तक दोहराई जा सकती है। सफलता न मिलने पर हताश या निराश न हों।
यह एक बड़ी ही सरल क्रिया है जिसे कोई भी व्यक्ति बड़ी ही सरलता से कहीं भी कर सकता है। इसमें केवल एक कटोरी और वर्णमाला युक्त एक कागज की आवश्यकता होती है।
‘प्लेनचिट’ में आत्मा का प्रवेश कराने वाला व्यक्ति पूर्ण रूप से शुद्ध होर एक साफ स्वच्छ स्थल पर सावधान की मुद्रा में बैठ जाता है। इसके पश्चात वह वर्णमाला से युक्त कागज जमीन पर बिछा देता है और उसके कागज के बीचों-बीच वह कटोरी के एक सिरे पर हल्के से रख देता है, उसके बाद वह प्रश्नकर्ता से भी अपनी तर्जनी अंगुली हल्के से रखने का आग्रह करता है। फिर वह मृत आत्मा का आह्वान मन ही मन करता है। यह आह्वान निरन्तर बार बार अंतराल में होना चाहिए, जब तक वह आत्मा कटोरी में प्रविष्ट न हो जाए। जैसी ही आत्मा कटोरी में प्रविष्ट होगी, कटोरी स्वयं ही हिलने लगेगी। अब आह्वानकर्ता सामने बैठे व्यक्ति से प्रश्न करने को कहता है। हर प्रश्न के उत्तर में कटोरी हर वर्ण की तरफ घूमेगी। आप उन वर्णों को जोडक़र उत्तर पा सकते है। इस सम्पूर्ण क्रिया के मध्य न तो आप हंसें और न ही कटोरी से अंगुली उठाएँ और न ही पूरे बल से कटोरी को दबाएँ अन्यथा आत्मा क्रोधित भी हो सकती है। उत्तर ‘हाँ’ अथवा ‘नहीं’ में मिलते हैं। सम्भाषण जैसे प्रश्नों के उत्तर पाने की आशा करना व्यर्थ होगा।
इस अध्याय में जिन साधनाओं का वर्णन में कर रहा हूँ उनका लाभ उन तांत्रिकों को अवश्य होगा जो पवित्र आचरण वाले, और नियमित रूप से साधना आदि का अभ्यास करने वाले हैं। इन सिद्धियों के लाभ की आधारशिला श्रद्धा है।
भगवान ईसा एक बार अपने शिष्यों के साथ यात्रा कर रहे थे। सामने एक छोटी सी पहाड़ी थी। भगवान ने कहा, ‘‘तुम सामने वाली पहाड़ी को देख रहे हो। तुम्हारे में से कोई भी व्यक्ति अगर इच्छा करेगा कि यह पहाड़ी यहाँ से उड़े और समुद्र में गिरे और उस इच्छा में तिल भर भी संदेह न हो तो सचमुच वह पहाड़ी उडक़र समुद्र में जाकर गिर पड़ेगी।’’ श्रद्धा की महानताओं को स्पष्ट करने वाला यह सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। साधना के द्वारा सब कुछ संभव है। यह सिद्धांत है। साधना के समय अहंकार भाव का त्याग कीजिए। गर्व को प्रकट न कीजिए। श्रद्धा और विश्वास द्वारा ही आप इस सिद्धि का अनुभव कर पाएंगे। सन्तुष्ट वृत्ति के बिना सिद्धियाँ प्राप्त नहीं होंगी। मन सदैव भटकता रहता है। मन को हर समय साधना के अभ्यास में लगने से ही सिद्धि प्राप्त होती है। साधना में सफलता साधक के मनोबल पर भी निर्भर रहती है। अब प्रस्तुत हैं कुछ विशिष्ट गोपनीय साधनायें।
अब मैं आपके समक्ष कुछ विशिष्ट तांत्रिक प्रयोग प्रस्तुत कर रहा हूँ। इन अनूठे प्रयोगों को करने से पहले सामग्री की शुद्धता, साधना में एकाग्रता और श्रद्धा, विश्वास के प्रति पहले आश्वस्त हों अन्यथा हानि की संभावना है।
प्लानचिट यन्त्र पर जो साधक आत्मा बुलाने की इच्छा रखते हों उनका सदाचारी, धर्मात्मा और पवित्र होना परम अत्यावश्यक है। वह सत्यवक्ता हो और सदैव एक समय भोजन करता हो, वह भी पवित्र और हल्का। माँस, मदिरा अथवा अन्य नशीली वस्तुऐं दुर्गन्धयुक्त पदार्थ खाने वाले मनुष्य भूल कर भी अभ्यास न करें इससे उनका अहित ही होगा। बवासीर या कुष्ठ रोग से ग्रस्त साधक भी प्राय: सफलता नहीं पाते हैं। प्लानचिट यन्त्र के अभ्यास के लिए चार व्यक्ति होने आवश्यक हैं। तीन साधक कहलाते हैं। और चौथे को सिद्ध कहते हैं। उनकी परस्पर एकता होनी चाहिए। साधकों का विश्वास सिद्ध पर और सिद्ध का विश्वास उन पर होना चाहिए। साधकों में कोई साधक सिद्ध की आज्ञा की अवहेलतना न करे। सिद्ध और साधक प्लानचिट यन्त्र के चारों ओर बैठें। इसके बाद ध्यान करे और प्रार्थना करे कि ऐसी कृपा हो कि आत्मा इस चक्र में शीघ्र आ जाये और हमारे सब कार्य सरलता पूर्वक पूर्ण हों।
इसके पश्चात इस यन्त्र पर हाथ रखें। अंगूठे से अंगूठा मिला रहे और सबसे छोटी अंगुली यानि कनिष्ठिका एक-दूसरे से परस्पर जुड़ी रहे, यह अंगुली सदैव मिली रहनी चाहिए।
सिद्ध को उत्तरी ध्रुव की ओर मुख करके इस यन्त्र के समक्ष बैठना चाहिए। प्रथम सिद्ध साधकों से कहें कि परमात्मा का ध्यान करो तत्पश्चात साधक और सिद्ध एक ही आत्मा का आह्वान करें। अगर रात्रि के समय हो तो मोमबत्ती रोशनी करें इसके बाद सब एकाग्रचित्त हो जायें। थोड़ी देर के बाद साधकों के शरीर में एक प्रकार की सनसनाहट उत्पन्न होगी यह आत्मा का प्रवेश उनके शरी में होगा। यह आत्मा अंगुलियों में प्रविष्ट होगी। उस वक्त साधकों की अंगुलियाँ काँपने लगेंगी और दृष्टि स्थिर हो जाएगी। साधक चित्रलिखित सा दिखलायी देगा। उस समय सिद्ध यन्त्र से प्रश्न करें कि अगर यन्त्र में किसी भी आत्मा की शक्ति आ गई है तो मेरी ओर भाग ऊँचा हो जाय। अगर आत्मा आ गई है तो अवश्य उठ जायेगा अगर न उठे तो सिद्ध और अन्य सभी कुछ समय तक फिर आत्मा का आह्वान करें अगर पहले दिन यह यन्त्र सिद्ध न हो तो निराश होकर साधना न छोड़ दें। बल्कि उसी स्थान पर उसी समय फिर अभ्यास करें तो यन्त्र अवश्य सिद्ध हो जायेगा। जब यन्त्र सिद्ध हो जाये और आत्मा उसमें प्रवेश कर जाये तब सिद्ध हो जाये कि उससे प्रश्न करें कि यदि आप हिन्दू हैं तो तीन बार पाया उठे। अब जितनी बार पाया उठेगा इससे उनकी जाति जाननी चाहिए। अगर हिन्दू हो तो राम-मराम, मुसलमान हो तो सलाम और अगर ईसाई हो तो शुभ रात्रि कहना चाहिए। यह भी पूछें कि आपकी अवस्था क्या है? जितने वर्ष की अवस्था हो उतनी ही बार पाए गिरे और जब अवस्था पता हो जाये फिर कहें कि अगर आप पढ़े लिखे हैं तो एक बार पाया गिरे वरना दो बार गिरे, अगर आप हिन्दी पढ़े हैं तो पाया एक बार, उर्दू पढ़े हैं तो पाया दो बार, यदि अंग्रेजी पढ़ हैं तो पाया तीन बार उठे।
आप अपना नाम बतला सकें तो पाया एक बार गिरे वरना दो बार। जो भी भाषा आत्मा बतलाये उसी भाषा में प्रश्न करें।
इसी प्रकार आप जो पूछते जायें उसे लिखितें जाएँ इस प्रकार भूत भविष्य, वर्तमान तीनों काल का हाल मालूम हो जाएगा। ध्यान रहे कि अगर किसी सज्जन मनुष्य की आत्मा होगी तो सत्य हाल बतलायेगी। अगर कोई दुष्ट आत्मा होगी तो असत्य वचन कहेगी।
जब आत्मा से अपने उद्देश्य को सिद्ध कर लें तो आत्मा से आप वापस जाने का निवेदन करें। और अपना हाथ मुंह धोकर १६ बार कुल्ला कर लें।
प्लानचिट यन्त्र पर यह प्रयोग रात्रि के दस बजे शुरु करना चाहिए। लेकिन ध्यान रहे कि जिस समय आँधी चल रही हो या बादल गरज रहे हों उस समय कभी भी प्रयोग नहीं करना चाहिये, क्योंकि ऐसे समय में प्लानचिट यंत्र अपना काम नहीं करता क्योंकि अगर आकाश में बादलों की गर्जना हो रही होगी बिजली चमक रही होगी उस समय प्राय: आत्मायें आकर भी वापस चली जाती है। साधकों को यह बात सदैव याद रखनी चाहिये। एक बात और प्लानचिट चन्त्र का कमरा ऐसा होना चाहिए जो कि न तो बहुत गर्म हो और न बहुत सर्द ही हो। हवा भी कमरे के भीतर बहुत अधिक न आनी चाहिए, कमरा साफ सुथरा होना चाहिए। कमरे में फर्श भी साफ बिछा होना चाहिए। कमरे में अधिक रोशनी की आवश्यकता नहीं है। जब आत्माओं का आह्वान करना हो उस वक्त कमरे में सुगन्धित वस्तु जला देनी चाहिए। यदि रात के समय आत्माओं का आह्वान करना हो तो कमरे में हल्की रोशनी करनी चाहिए।
जिस कमरे में प्लानचिट यन्त्र रखा जाए उसकी दीवारों पर देवी-देवताओं के सुन्दर चित्र लगे होने चाहिए। आत्माओं के बुलाने वाले मनुष्यों के वस्त्र स्वच्छ सुन्दर व सफेद होने चाहिए। तात्पर्य यह है कि कमरे में किसी प्रकार की दुर्गन्ध आद न होनी चाहिए वरना हो सकता है कि आत्माएँ वहाँ प्रवेश ही न करें। इन सब बातों का ध्यान रखकर ही आप आत्मा को बुलाने में सफल हो सकते हैं। आत्मा के उपस्थित होने पर केवल निवेदन ही करें आदेश देने पर अहित भी हो सकता है। यह बात सदैव ध्यान रखें।
प्रय: देखा गया है कि आत्मा शीघ्र ही वापस जाना चाहती है। ऐसी स्थिति में आप अवरोध न बनें-उसे जाने दें कई बार ऐसा भी अनुभव में अया है कि प्रश्न पूरे होने पर भी आत्मा जाने से इन्कार कर देती है। ऐसे जटिल समय में आप धीरज रखें और नम्रता पूर्वक आत्मा को विदा होने को कहें। मेरा स्वयं का अनुभव है कि वह स्वयं ही चली जाएगी। प्लेनचिट का मूल आधार शुद्ध वातावरण और आपका दृढ़ विश्वान कि आत्मा अवश्य आएगी।
माध्यम
मृत आत्माओं से सम्पर्क करने की दूसरी सशक्त यह विद्या है। इसमें मृत आत्मा को आह्वानकत्र्ता किसी को माध्यम बनाकर उसमें आत्मा का प्रवेश कराता है। यह विधि थोड़ी जटिल एवं कठिन अवश्य है, पर है काफी रोचक।
इस क्रिया में आह्वानकत्र्ता को एक अच्छे माध्यम की खोज होती है। वह माध्यम कोई भी हो सकता है, वह एक पक्षी या जन्तु हो सकता है या फिर कोई मनुष्य।
माध्यम की उपलब्धि के पश्चात आह्वानकत्र्ता उेस अपने समक्ष एक कुर्सी पर बैठने का संकेत करता है। इसके बाद वह उसे कोई तरल वस्तु पीने के लिए देता है, माध्यम कुछ पीकर शेष किसी चौड़े बर्तन में फेंक देता है। उसके बाद वह आह्वानकत्र्ता उस पानी को निरन्तर देखने का ‘‘आदेश’’ देता है। धीरे-धीरे माध्यम उस वस्तु में लिप्त हो जाता है। उसे पानी के स्थान पर उस पात्र में कुछ विचित्र सी आकृतियाँ घूमती-फिरती नज़र आती हैं। यही वह आकृतियाँ हैं जिन्हें हम मृम आत्माएँ कहते हैं। आह्वानकत्र्ता माध्यम से प्रश्न करता है और माध्यम उन आत्माओं से पूछकर जो भी उत्तर पाता है, बोलता है। इस विधि में माध्यम ही प्रमुख रहता है। यह विधि काफी जोखिम से भरी है काफी रोचक और रहस्यपूर्ण। विधि का मुख्य हिस्सा है माध्यम का एकाग्र मन।
सम्मोहन
सम्मोहन का प्रयोग करके किसी भी चेतन वस्तु को माध्यम बनाया जा सकता है। इस क्रिया में सम्मोहनकरने वाले को लम्बी साधना की आवश्यकता होती है। यह साधना वह त्राटक के माध्यम से करता है।
सम्मोहन में सम्मोहनकत्र्ता माध्यम को आदेश कभी और से, कभी हाथों से तो कभी-कभी बोलकर संदेश प्रसारित करता है। माध्यम इन संदेशों को ग्रहण कर उन पर कहे अनुसार अमल करता है। जब वह पूरी तरह सम्मोहित हो जाता है। तब सम्मोहित कत्र्ता के प्रश्नों के उत्तर लिखकर या बोलकर देता है। इसमें सम्मोहन कत्र्ता प्रमुख भूमिका निभाता है।
सम्मोहन, चिकित्सा, वशीकरण एवं ध्यान दृष्टि (क्लेपरवायन्स) में काफी लाभदायक एवं प्रभावी सिद्ध हुआ है। मेरे विचार में तो आँखों को साधने का ही दूसरा नाम सम्मोहन है या हिप्नाटिज्म है। इस विषय की पूरी पुस्तक ‘चमत्कारी हिप्नाटिज्म’ लेखक एस. एम. बहल पढ़े।
स्पीरियो स्कोप
आत्माओं से सम्पर्क करने का एक और साधन है, वह है स्पीरियों स्कोप! यह एक विशेष प्रकार को कैमरानुमा डिब्बा होता है। केवल एक ओर से खुला होता है। इसमें अनेक छोटे-छोटे छेद कर दिए जाते हैं तथा एक छोटी सी मोमबत्ती खुले भाग से भीतर रखकर जला दी जाती है। मृतक का निकटस्थ सम्बन्धी आत्मा का आह्वान करता है और उन छिद्रों का प्रकाश दीवार पर पड़ता है। इस क्रिया के नियम और व्यवस्था प्लेनचिट के समान ही हैं। इसमें भी उत्तर संक्षिप्त ही मिलता है।